जाने क्यों खास है तुलसी दिवस और क्यों मनाया जाता ? क्या है इसका इतिहास

आज तुलसी दिवस के शुभ अवसर पर लोग तुलसी के पौधे एक दूसरे को वितरित करते हैं और साथ ही तुलसी माता की पूजन किया जाता है जगह-जगह मंदिरों में तुलसी जी की पूजन एवं अर्चना किया जाता है
पुराणों में तुलसी के पौधे का एक विशेष और महत्व रखा गया है प्राचीन काल में से ही तुलसी का पौधा का स्थान सनातन धर्म में खास है मान्यता है कि जिस घर के आंगन में तुलसी का पौधा रहता है उस घर में माता श्री लक्ष्मी का निवास होता है और सुख शांति और समृद्धि बना रहता है भगवान विष्णु जी को तुलसी बहुत प्रिय होने के कारण बिना तुलसी भी कोई भी भोग स्वीकार नहीं करते हैं

प्राचीन समय से ही मान्यता चली आ रही है कि कुछ विशेष दिनों पर तुलसी के तुलसी के पत्तों को नहीं तोड़ा जाता है इसमें वह दिन है रविवार और मंगलवार, रविवार और मंगलवार को तुलसी का पत्ता तोड़ने से माना इसलिए किया जाता है क्योंकि इस दिन तुलसी का पत्ता तोड़ना शुभ नहीं माना जाता है

तुलसी जी का रख रखाव (Tilsi ji ka rakh rakhaw)

तुलसी के पत्तों को चबाकर नहीं खाना चाहिए, रविवार को तुलसी के पौधे में पानी नहीं डालनी चाहिए, तुलसी की मंजरी को लाल रंग के कपड़े में बांधने के बाद इस कपड़े को घर की तिजोरी में रखने से लक्ष्मी का वास होता है और जीवन सुखमय हो जाता है तुलसी के पौधों को साफ सुथरा और स्नान कर के ही अस्पर्स करनी चाहिए अगर घर में तुलसी का पौधा है तो सुबह शाम दीपक जलाना चाहिए और आरती करनी चाहिए

तुलसी जी का पूजन (tulsi Ji ka pujan)

पूजा स्थल को अच्छी तरह से साफ करने के बाद उसे गाय के गोबर से लीपे और तब वहां पर तुलसी जी के पौधे को गमले सहित वहां रखे उसके बाद तुलसी जी को वस्त्र धारण (चुनरी पहनने) के बाद प्रसाद यथासंभव प्रसाद रखें और फिर प्रेम पूर्व माता तुलसी जी का ध्यान करें और इस मंत्र की जाप करें

“महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते”

पूजा संपन्न होने के बाद प्रसाद को सभी श्रद्धालुओं में बांट दें इस प्रकार तुलसी पूजन संपन्न होता है

आईए जानते हैं तुलसी का इतिहास (tulsi Ji ka itihas )

तुलसी पौधा पिछले जन्म में एक लड़की थी जिसका नाम वृंदा था रक्षक कुल में जन्मी या लड़की जन्म से ही भगवान विष्णु की सेवक थी जब यह लड़की बड़ी हुई तो इसकी शादी रक्षक कुल में ही एक जालंधर नाम का युवक से हो गया, प्राचीन समय की बात है जब देवताओं और राक्षसों मैं जंग छिड़ तो जालंधर को भी युद्ध लड़ने के लिए जाना पड़ा।

जब जालंधर युद्ध के लिए जा रहा था तो बृंदा बोली कि आप मत जाइए इस पर जालंधर ने उसकी बात को इनकार कर दिया तब वृंदा ने उनके लिए यज्ञ का आवाहन किया और प्रण किया कि जब तक हमारे पति वापस नहीं आ जाएंगे तब तक उनके लिए मैं यज्ञ करती रहूंगी और है और वह यज्ञ करने लगती है।

और इधर जालंधर युद्ध लड़ने के लिए चला जाता है इस प्रकार जालंधर युद्ध में देवताओं पर भारी पड़ने लगा और देवता गढ़ उसे हारने लगे अतः देवताओं ने परेशान होकर के भगवान विष्णु के पास गए और इस समस्या का समाधान उनसे मांगा तो भगवान विष्णु ने कहा कि यह सभी वृंदा के यज्ञ का प्रभाव है वह मेरी परम भक्त है

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वह जब तक यज्ञ करती रहेगी तब तक जालंधर को हराना असंभव है इस पर देवताओं ने उनसे कुछ उपाय मांगा तो भगवान विष्णु ने कहा कि मैं अपनी भक्ति के साथ धोखा नहीं कर सकता, देवताओं के बार-बार कहने पर भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण करके वृंदा के समक्ष खड़े हो गए इस प्रकार वृंदा अपने पति स्वरूप विष्णु को देखकर प्रसन्न हो गई और यज्ञ का समापन कर दिया और उधर देवताओं ने जालंधर का वध कर दिया

जब जालंधर का सर बृंदा के आंगन में गिरा तो आश्चर्य हो गई और अपने पति स्वरूप भगवान विष्णु से बोली कि आप कौन हैं तो भगवान विष्णु अपने सामान्य रूप में आ गए और इस प्रकार बृंदा को बहुत क्रोध आया और भगवान विष्णु को श्राप दे दी कि तुम अभी इसी वक्त पत्थर के बन जाओगे इस प्रकार भगवान विष्णु पत्थर बन गए और देवताओं मे हाहाकार मच गया।

अतः सभी देवतागढ़ वृंदा के पास आकर प्रार्थना किया कि भगवान विष्णु को सामान्य रूप में कर दो तो वृंदा ने उन्हें सामान्य कर दिया और इस प्रकार वृंदा अपने पति का सिर लेकर के सती बन गई और उनके राख एक पौधा का जन्म हुआ जिसका नाम भगवान विष्णु ने तुलसी रखा और कहा कि मैं इसी पौधे के साथ रहूंगा जिसका शालिग्राम के साथ पूजन किया जाएगा इस प्रकार समय बीतता गया और पूर्वांतर में कार्तिक मास में तुलसी का विवाह शालिग्राम जी से संपन्न हो गया

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